रचना: कैफ़ी आज़मी
स्वर: भूपिन्दर, रफ़ी, तलत महमूद और मन्ना डे
होके मजबूर मुझे उसने भुलाया होगा
ज़हर चुपके से दवा जानके खाया होगा
दिल ने ऐसे भी कुछ अफ़साने सुनाए होंगे
अश्क़ आँखों ने पिये और न बहाए होंगे
बन्द कमरे में जो खत मेरे जलाए होंगे
एक इक हर्फ़ जबीं पर उभर आया होगा
उसने घबराके नज़र लाख बचाई होगी
दिल की लुटती हुई दुनिया नज़र आई होगी
मेज़ से जब मेरी तस्वीर हटाई होगी
हर तरफ़ मुझको तड़पता हुआ पाया होगा
छेड़ की बात पे अरमाँ मचल आए होंगे
ग़म दिखावे की हँसी में उबल आए होंगे
नाम पर मेरे जब आँसू निकल आए होंगे
सर न काँधे से सहेली के उठाया होगा
ज़ुल्फ़ ज़िद करके किसी ने जो बनाई होगी
और भी ग़म की घटा मुखड़े पे छाई होगी
बिजली नज़रों ने कई दिन न गिराई होगी
रँग चहरे पे कई रोज़ न आया होगा
यह गीत जितनी बार भी सुनो दिल को छू जाता है। आज तक शायद ही कभी इसे सुनकर मेरी आँखें न भरी हों।
सच है…जितनी बार इस गीत को सुनो..उतनी ही बार आँखे नम हो जाती हैं…
Rafi Sahab ne kamal hi kar diya tha.
Jo dard gaane me tha. woh hi dard
unhone aawaz men de diya tha.
very nice song